Our Writing is collection of words that speaks from Heart. You will find a bitter truth in our words.
Monday, 24 August 2020
गीत-किस्सों के जरिये आदर्श और मूल्यों को बचाने की कोशिश में लगे मास्टर छोटूराम.
(देश-विदेश में हज़ारों स्टेज कार्यक्रम दे चुके मास्टर छोटूराम हमारे देश के वीर-शहीदों जैसे शहीद भगतसिंह, सुभाष चद्र बोस, लाल बहादुर शास्त्री, शहीद उद्यम सिंह के साथ-साथ अन्य सपूतों की जीवनी को जब अपने गीतों और किस्सों के माध्यम से स्टेज पर प्रस्तुत करते है तो देशभक्ति की रसधार बहने लगती है. लोगों को आज के अश्लील दौर में एक सभ्य और जीवन मूल्यों से भरे गीतों को सुनंने का सुनहरा अवसर मिलता है.)
प्राचीन समय से ही इंसान का विभिन्न कलाओं के प्रति अटूट रिश्ता रहा है. कभी कलाकारों के फ़न ने तो कभी कलाओं के मुरीद लोगों ने इस ज़माने में नए-नए रंग बिखेरे है. ये माना जाता है कि आत्मा की तरह कला अजर-अमर है, ये एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक हस्तांतरित होती है और नया रूप लेती है. आज कला के रूप बदरंग हो गए है. कलाकार अपने उद्देश्यों से भटक गए है और पैसों के पीछे दौड़ पड़े है जो एक तरह कला को बेचने जैसा है. आज कला के नाम पर परोसी जा रही अश्लीलता समाज को लील रही है.
Saturday, 8 August 2020
सभी किसान परिवारों तक नहीं पहुंच रहा है किसान सम्मान
ये फायदे जिन किसानों को समय पर मिलने थे उनको मिले नहीं, उचित भू-अभिलेखों के अभाव में लाभार्थियों की पहचान की समस्याएं सामने आई और प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत जिन किसानों के बैंक खातों में पैसे तो पहुंचाए जा रहें है वो कहीं बैंक बंद होने के कारण तो कहीं बैंक से जुड़ी और कोई समस्या से किसान राशि का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं।
- डॉo सत्यवान सौरभ
प्रधानमंत्री किसान निधि (पीएम-केएसएएन) भारत सरकार की पहली सार्वभौमिक बुनियादी आय-प्रदान करने की योजना है, जो भूमि पर आधारित किसानों के लिए काफी फायदेमंद है। मोदी सरकार ने किसानों की सहायता के लिए इसे दिसंबर 2018 में पेश किया गया था। प्रारंभ में, इस योजना को छोटे और मध्यम भूमि वाले किसानों पर लक्षित किया गया था, लेकिन कृषि क्षेत्र के सकल मूल्य में गिरावट को देखते हुए इसे मई 2019 में सभी किसानों के लिए बढ़ा दिया गया था।
नरेंद्र मोदी सरकार ने 2019 फरवरी में पीएम किसान सम्मान निधि योजना की शुरुआत की थी। सरकार की ओर से इस तर्क के साथ यह स्कीम लांच किया गया था कि कर्ज की माफी कराना स्थाई समाधान नहीं है, इसलिए इस तरह के स्कीम से किसानों को राहत मिल सकेगी और वे कर्ज में डूबने से बच सकेंगे। पीएम किसान सम्मान निधि योजना के तहत प्रत्येक वर्ष देश के करोड़ो किसानों को 6 हजार रूपये की प्रोत्साहन राशि दी जाती है। इस योजना के तहत कृषि क्षेत्र से जुड़े लोगों को सीधे नगद का लाभ दिया जाता है। किसान जरूरत पड़ने पर बिना किसी कर्ज के साथ अपनी खेती-बाड़ी संभाल सके, इसी उद्देश्य के साथ इस योजना की शुरूआत की गई है।
यह योजना देश भर के सभी भूमिहीन किसानों के परिवारों को आय सहायता प्रदान करके किसानों की आय बढ़ाने के उद्देश्य से शुरू की गई थी, ताकि वे कृषि और संबद्ध गतिविधियों के साथ-साथ घरेलू जरूरतों से संबंधित खर्चों का ध्यान रख सकें। इस योजना के तहत उच्च आय की स्थिति से संबंधित कुछ बहिष्करण मानदंडों के अधीन, रु 6000 / - प्रति वर्ष की राशि को रु2000 / - की तीन -मासिक किस्तों में सीधे किसानों के बैंक खातों में हस्तांतरित की जाती है। योजना का फायदा उठाने के लिए किसान के नाम खेती की जमीन होनी चाहिए। अगर कोई किसान खेती कर रहा है, लेकिन खेत उसके नाम ना होकर उसके पिता या दादा के नाम है, तो वह व्यक्ति इस योजना का फायदा नहीं उठा सकता है।
गांवों में कई ऐसे किसान होते हैं, जो खेती के कार्यों से तो जु़ड़े होते हैं, लेकिन खेत उनके स्वयं के नहीं होते। अर्थात वे किसी और के खेतों में खेती करते हैं और खेत मालिक को इसके बदले हर फसल का हिस्सा देते हैं। ऐसे किसान भी पीएम किसान सम्मान निधि योजना के लाभार्थियों की सूची में शामिल नहीं होंगे। सभी संस्थागत भूमि धारक भी इस योजना के दायरे में नहीं आएंगे. अगर कोई किसान या परिवार में कोई संवैधानिक पद पर है तो उसे लाभ नहीं मिलेगा. राज्य/केंद्र सरकार के साथ-साथ पीएसयू और सरकारी स्वायत्त निकायों के सेवारत या सेवानिवृत्त अधिकारी और कर्मचारी होने पर भी योजना के लाभ के दायरे में नहीं आएंगे. डॉक्टर, इंजीनियर, सीए, आर्किटेक्ट्स और वकील जैसे प्रोफेशनल्स को भी योजना का लाभ नहीं मिलेगा, भले ही वह किसानी भी करते हों.
10,000 रुपये से अधिक की मासिक पेंशन पाने वाले सेवानिवृत्त पेंशनभोगियों को इसका लाभ नहीं मिलेगा. अंतिम मूल्यांकन वर्ष में इनकम टैक्स का भुगतान करने वाले पेशेवरों को भी योजना के दायरे से बाहर रखा गया है. किसान परिवार में कोई म्यूनिसिपल कॉरपोरेशंस, जिला पंचायत में हो तो भी इसके दायरे से बाहर होगा.
सहायता प्राप्त करने के लिए लाभार्थी की पहचान की पूरी जिम्मेदारी राज्य / केन्द्र शासित प्रदेशों की सरकारों के साथ है। इस वर्ष केंद्रीय बजट ने 2020-21 में इस योजना को 75,000 करोड़ रुपये आवंटित किए थे। लॉकडाउन अवधि के दौरान ये योजन किसानों के लिए जीवन दायिनी सिद्ध हुई है, पीएम-केएसएएन योजना को लॉकडाउन के दौरान किसानों को सहायता प्रदान करने के लिए एक उपयोगी प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज में शामिल किया गया था और 28 मार्च को यह घोषणा की गई थी कि 2,000 रुपये (6,000 रुपये में से) 8.7 मिलियन किसानों को फ्रंट-लोड किया जाएगा। ।
लेकिन ये फायदे जिन किसानों को समय पर मिलने थे उनको मिले नहीं, उचित भू-अभिलेखों के अभाव में लाभार्थियों की पहचान की समस्याएं सामने आई हैं। इसके अलावा, भूमिहीन मजदूरों या शहरी गरीबों को आय सहायता योजना से वंचित रखने का कोई विशेष कारण नहीं है। यह योजना कोई दीर्घकालिक समाधान नहीं है। पीएम-केसान सभी किसान परिवारों तक अपनी इच्छानुसार नहीं पहुंच रहे हैं। यूपी, हरियाणा और राजस्थान के अधिकांश किसानों के पास जमीन है और उन्हें लाभ मिलना चाहिए। लेकिन केवल 21 प्रतिशत कृषकों ने लाभ प्राप्त करने की सूचना दी। किसान सम्मान इसलिए पीएम-किसान की पहुंच और उसके लक्ष्य को लेकर अनिश्चितता को देखते हुए, इस अवधि के दौरान योजना की प्रासंगिकता का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन करने की आवश्यकता है।
एक सर्वेक्षण में, तालाबंदी के दौरान जिन परिवारों को अपनी दिन-प्रतिदिन की खपत की जरूरतों को पूरा करने के लिए उधार लेना पड़ता था, वे आकस्मिक मजदूरी श्रमिकों और व्यावसायिक परिवारों की तुलना में किसानों (34 प्रतिशत) के लिए अपेक्षाकृत कम थे। जबकि 7 फीसदी फार्म हाउसों में तालाबंदी के दौरान कभी-कभार भोजन की अनुपलब्धता का सामना करना पड़ा, यह आंकड़ा आकस्मिक श्रमिकों (24 प्रतिशत) और व्यावसायिक परिवारों (14 प्रतिशत) के लिए बहुत अधिक था।
कुल मिलाकर, जब पीएम-किसन (खेत और गैर-कृषि घर दोनों सहित) के गैर-प्राप्तकर्ताओं की तुलना में, इन घरों में आर्थिक संकट के निचले लक्षण दिखाई दिए।
लगभग 35 प्रतिशत ग्रामीण किसान योजना प्राप्तकर्ताओं को आधे से अधिक गैर-प्राप्तकर्ताओं की तुलना में काफी हद तक आय का नुकसान हुआ। 48% गैर-प्राप्तकर्ताओं के मुकाबले इस अवधि के दौरान पीएम-केसान के एक तिहाई से अधिक लोगों ने उधार लिया। हालाँकि, ये घराने पीएम-किसान लाभ प्राप्त करने से पहले ही सामान्य ग्रामीण आबादी से कुछ बेहतर थे।
कोरोना वायरस के कारण देशभर में लॉकडाउन लागू है। लॉकडाउन का सबसे अधिक प्रभाव किसान व मजदूर तबके पर पड़ा है। ऐसे में सरकार द्वारा कई ऐसी योजनाएं चलाई जा रही हैं, जिससे किसानों को थोड़ी बहुत राहत मिल सके। लेकिन इन सब के बीच में किसानों के लिए एक और बड़ी समस्या निकलकर बाहर आ रही है। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत किसानों के बैंक खातों में पैसे तो पहुंच जा रही है, लेकिन कहीं बैंक बंद होने के कारण तो कहीं बैंक से जुड़ी और कोई समस्या से किसान राशि का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं।
Wednesday, 5 August 2020
नए उपभोक्ता संरक्षण कानून के लागू होने से पुराने नियमों की खामियाँ दूर हुई है
(नये कानून के मुताबिक घटिया समान बेचने वालों को, गुमराह करने वाले विज्ञापन देने वालों को जेल की हवा खानी पड़ेगी.)
--- डॉo सत्यवान सौरभ,रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस, दिल्ली यूनिवर्सिटी,कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट,--- डॉo सत्यवान सौरभ,
The implementation of the new Consumer Protection Act has removed the flaws of the old rules.
(According to the new law, those who sell inferior goods, those who mislead advertisements will have to breathe in the air of jail.)
Tuesday, 4 August 2020
( विशेष रूप से भीड़, बंद, खराब हवादार सेटिंग्स में एयरबोर्न ट्रांसमिशन की संभावना को खारिज नहीं किया जा सकता है)
आज भारत में कोरोना के मरीज सबसे ज्यादा हो चुके है जो एक बेहद चिंताजनक स्थिति है, हमारे लिए मृत्युदर कम होना ही एक संतोष की बात है जिसकी वजह से हमने आज इससे डरना बंद कर दिया है मगर ये स्थिति इलाज के अभाव में कभी भी करवट ले सकती है .तेजी से फैलते कोरोना संक्रमण पर विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक एजेंसी ने स्वीकार किया कि कोरोनोवायरस के हवाई प्रसारण से इनडोर स्थानों में खतरा हो सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने आख़िरकार यह स्वीकार किया कि कोरोना वायरस संक्रमण के ‘हवा से फैलने’ के सबूत हैं. एजेंसी के वैज्ञानिकों ने एक समाचार ब्रीफिंग में कहा कि विशेष रूप से भीड़, बंद, खराब हवादार सेटिंग्स में एयरबोर्न ट्रांसमिशन की संभावना को खारिज नहीं किया जा सकता है। एजेंसी के मुताबिक इनडोर वातावरण के लिए "उचित वेंटिलेशन" होना बेहद जरूरी है.
क्लीनिकल इंफ़ेक्शियस डिज़ीज़ जर्नल के एक खुले ख़त में 32 देशों के 239 वैज्ञानिकों ने इस बात के प्रमाण दिए है कि ये ‘फ़्लोटिंग वायरस’ है जो हवा में ठहर सकता है और सांस लेने पर लोगों को संक्रमित कर सकता है. यदि किसी संक्रमित मरीज को किसी भी बंद स्थान पर काफी समय तक रखा जाए तो उस स्थान में भी हावी में कोरोना वायरस मौजूद रहेगा और उस हवा के संपर्क में आने से कोई भी कोरोना संक्रमित हो सकता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने माना है कि संक्रमित व्यक्ति के छींकने और खांसने से निकली छोटी बूंदें काफी देर तक तक हवा में रहती हैं और इससे दूसरो को संक्रमण का खतरा रहता है इसलिए सबको हवा से हुए प्रसार से सतर्क रहने की जरूरत है
भारत के सीअसआईआर के चीफ शेखर सी मांडे ने भी अपने ब्लॉग में इन सभी चिंताओं पर अपनी राय रखी है और विभिन्न स्टडी तथा विश्लेषणों के हवाले से लिखा कि जितने भी सबूत निकले हैं उससे पता चलता है कि कोरोना का हवा से भी प्रसार संभव है। उन्होंने कहा कि 'यह तो साफ है कि जब लोग छींकते हैं या खांसते हैं तो उससे हवा में बूंदें निकलती हैं। बड़ी बूंदें तो जमीन पर गिर जाती हैं लेकिन छोटी बूदें हवा में काफी समय तैरती रहती हैं। किसी संक्रमित व्यक्ति के छींकने या खांसने से निकलने वाली बड़ी बूंदें तो जमीन पर गिर जाती हैं और यह ज्यादा दूर तक नहीं जाती हैं। लेकिन छोटी बूंदें लंबे समय तक हवा में मौजूद रहती हैं। ये छोटी बूंदे एरोसोल की तरह होती है.
एरोसोल हवा में निलंबित कण है जो धूल, धुंध, या धूम्रपान से बन सकते हैं। वायरस के संचरण के संदर्भ में एरोसोल सांस की बूंदों की तुलना में छोटे (5 माइक्रोन या उससे कम) होते है, सामान्य इनडोर वायु वेगों पर, एक 5 माइक्रोन छोटी बूंद दस मीटर की दूरी तय करती है जो कि एक विशिष्ट कमरे के पैमाने से बहुत अधिक है। ये लंबे समय तक हवा में निलंबित रहते हैं, एक व्यक्ति जो कोरोना पॉजिटिव है, वह छोटे खराब हवादार कमरे में 1-2 मीटर की दूरी पर भी खड़े लोगों को संक्रमित करने की संभावना रखता है। ऐसे वातावरण में रहने वाले लोग इन वायरस को संभावित रूप से एक दूसरे में संक्रमित कर सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप संक्रमण और बीमारी होती है। इसलिए तो कोविद-19 संक्रमण फैलाने वाली सांस की बूंदों ने महामारी की शुरुआत से हमें मास्क पहनना, दूरी रखना, और हाथ धोने की दिनचर्या अपनाने को मजबूर किया है.
छोटी बूंद के रूप में बूंदों और एरोसोल को छोटी बूंदों के रूप में देखने से एक छोटी बूंद और एरोसोल के बीच अंतर का अनुमान लगाया जा सकता है। एक बीमार व्यक्ति के मुंह या नाक से आने वाली बूंदें भारी होती हैं, और छह फीट से अधिक आगे बढ़ने से पहले जमीन पर गिर सकती हैं। तभी तो हम कोरोना से बचने के लिए एक दूसरे के बीच 1.5 मीटर से अधिक दूरी बनाए रखने के लिए जोर दे रहे है। एरोसोल, जो बहुत छोटे होते हैं, लैंडिंग से पहले लंबे समय तक लम्बी यात्रा कर सकते हैं। एरोसोल की कल्पना कुछ हद तक एक शराबी की तरह हो सकती है जो रात में खराब रोशनी वाली सड़क पर चलता जाता है जब तक उसको उस रस्ते से दूर नहीं किया जाता.
ठीक वैसे ही छोटी बूंदों और कणों (व्यास <5 माइक्रोन -10 माइक्रोन) को हवा में अनिश्चित काल तक निलंबित रखा जा सकता है, जब तक कि वे एक हल्के हवा या वेंटिलेशन एयरफ्लो से दूर नहीं किए जाते हैं। यह एक दीवार, फर्नीचर या एक व्यक्ति का शरीर हो सकता है जो इस प्रकार सफलतापूर्वक लोगों को संक्रमित कर सकता है। वायरस का जीवनकाल जो किसी सतह पर गिरता है वह कुछ मिनटों से लेकर कुछ घंटों के बीच कहीं भी हो सकता है। एक हालिया अध्ययन में, यह पाया गया कि सबसे संक्रमित क्षेत्र रोगी क्षेत्र में 1 मीटर-वर्ग वाला मोबाइल शौचालय था। ये भी पाया गया है कि जोखिम वातानुकूलित कमरों में सबसे अधिक है, विशेष रूप से केबिन या पिंजरे जैसे कमरे।
दूसरी ओर विशाल हवादार कमरे, संचरण का कम जोखिम वहन करते हैं। इसका मतलब यह है कि एक आउटडोर सब्जी बाजार एक सुपरमार्केट से अधिक सुरक्षित है और एक सुपरमार्केट एक छोटे डिपार्टमेंटल स्टोर की तुलना में सुरक्षित है; हालांकि यह माना जाता है कि लोग शारीरिक संतुलन के मानदंडों को बनाए रखते हैं। तो अगर आप घर के अंदर हैं, तो अधिकतम वेंटिलेशन सुनिश्चित करने के लिए खिड़कियां खोलें। कोरोनावायरस का एयरबोर्न संचरण संभावित रूप से एक चिंता का विषय है, इसका मतलब है कि वायरस आमतौर पर निकट संपर्क की अनुपस्थिति में यात्रा कर सकता या फ़ैल सकता है।
यह इस संभावना को भी बढ़ाता है कि वायरस हवा की धाराओं पर यात्रा कर सकता है, और यहां तक कि एयर कंडीशनिंग के माध्यम से प्रेषित किया जा सकता है। इसका मतलब यह है कि सामाजिक दूरी हमेशा प्रभावी नहीं हो सकती है और कोरोना वायरस विशेष रूप से कम वेंटिलेशन के साथ भीड़ वाले इनडोर क्षेत्रों में एक बड़ा खतरा हो सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन इस मामले में फिलहाल दुनियाभर के अलग-अलग देशों के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर इस पर और ज्यादा काम कर रहा है और जानकारी ये जुटाने की कोशिश कर रहा है कि ऐसी और कौन सी जगह है जहां, हवा के माध्यम से कोरोना वायरस फैल सकता है। खैर कुछ भी अभी तक हमें कोरोना के पैदा होने, फैलने और खत्म होने के बारे सही जानकारी नहीं मिल पाई है. इसलिए सावधानी ही बचाव है.
--- Dr. Satywan Saurabh
Research Scholar in Political Science, Delhi University--- डॉo सत्यवान सौरभ,
Sunday, 2 August 2020
हमारे असली हीरो है नर्सें, पुलिस कांस्टेबल और मैडीकल सफाई-कर्मी
(जब हर घर के दरवाजे बंद थे तो यही वो लोग थे जो आपकी पल-पल की खबर ले रहे थे, आपकी हर सहायता अपनी जान दांव पर लगाकर कर रहे थे, तो फिर आज जब इनको हमारी जरूरत है तो हम क्यों इनके लिए आगे नहीं आ रहे?)
—-प्रियंका सौरभ
बेशक समाज एवं सरकार के अलग-अलग पक्ष अपने-अपने धरातल पर कोरोना महामारी से जन-समाज को बचाने और वायरस पर अंकुश लगाने के लिए कर्त्तव्य-निष्ठा के साथ जुटे हुए हैं, परन्तु इस जंग में पहली कतार में बड़ी कुर्बानी देने वाले नर्सें, पुलिस कांस्टेबल और मैडीकल सफाई-कर्मी शामिल हैं। इस समुदाय के कर्मचारी प्रारम्भ से ही कोरोना महामारी के विरुद्ध पूरी प्रतिबद्धता एवं निष्ठा के साथ संघर्षरत हैं। इसी कारण ये लोग कोरोना वायरस के सीधे निशाने पर रहते हैं, परन्तु कितने खेद और आश्चर्य की बात है कि सरकारी नीतियों और सत्ता-व्यवस्था के चाबुक का सबसे बड़ा शिकार भी आज इसी वर्ग को बनना पड़ रहा है। बेशक इस बात से इस वर्ग के प्रति प्रशासनिक उपेक्षा के कारण इस व्यवस्साय से जुड़े लोगों की मानसिकता को आघात् पहुंचा है.
विभिन्न सरकारी कार्यक्रमों के माध्यम से अपने प्राणों के खतरे को साथ लेकर बुनियादी सेवाएं प्रदान करने वाले सचमुच ये योद्धा कार्यकर्ता देश की सामाजिक कल्याण प्रणाली की रीढ़ हैं। मगर इनके लिए उन शर्तों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाता है, जिनके तहत वे काम करते हैं। प्रशासनिक उपेक्षा के कारण इस व्यवस्साय से जुड़े लोगों की मानसिकता को आघात् पहुंचा है, परन्तु सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी ने जहां इस समुदाय के लोगों को ढाढस बंधाया है, वहीं सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय इन लोगों की निष्ठा, प्रतिबद्धता और इनके शौर्य को मान्यता भी प्रदान करता है।
ये फ्रंटलाइन सरकारी कर्मचारी विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं और सार्वजनिक सेवा वितरण के सच्चे कार्यान्वयनकर्ता हैं। वे जमीनी स्तर पर काम करते हैं, इस प्रकार नागरिकों की बेहतर आवश्यकताओं के बारे में जानते हैं, जिससे एक प्राथमिक फीड-बैक कलेक्टर और सहायक के रूप में कार्य किया जाता है। मगर हैरानी की बात है कि अपनी जान पर खेलकर लोगों कि जान बचाने वाले इन योद्धा कार्यकर्ताओं के कार्यों को इनकी ड्यूटी का हिस्सा मानकर शून्य कर दिया जाता है, कोरोना के विरुद्ध जंग में जिस वर्ग की भूमिका और दायित्वशीलता सर्वाधिक अहम् रही है, उनको आज हमारी व्यवस्था अपने निशाने पर ले रही है। कहाँ तो इनको अग्रिम कतार के योद्धा होने के कारण अतिरिक्त सुविधाएं दी जानी चाहिएं थी , और कहां ये कोरोना संक्रमित हो जाने पर आज अपनी जान बचाने को तरस रहे है, सबकी जान बचाने वालों की खुद की जान खतरे में है, यदि इन में से किसी सदस्य को एकांतवास अथवा क्वारेंटाइन में जाना पड़ा है, तो इन दिनों का उसका वेतन ही काट लिया जा रहा है, कहीं-कहीं पर तो इनको महीनों का वेतन भी नहीं मिला है.
नर्से, पुलिस और सफाई कर्मचारी आज काम के घंटों और वेतन आदि की समस्याओं से त्रस्त हैं। नर्सों का वेतन तो फिर भी थोड़ा अच्छा है लेकिन देश भर में पुलिस और सफाई कर्मचारियों को इतना वेतन नहीं दिया जाता है जिसके वे हकदार है. दूसरा इनके ड्यूटी के घण्टे इतने मुश्किल होते है कि उनके मुताबिक इनको वो सुविधाएँ नहीं मिल रही है जिससे ये अपने काम को आसान कर सके. बड़े अफसरों का दबाव इनके मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर कर रहा है, अफसरों के जुबानी आदेशों को इनको हर हाल में पूरा करना पड़ता है . इन वर्ग के लोगों की संतुष्टि के लिए देश और समाज को प्रत्येक सम्भव उपाय करना आज बहुत ज़रूरी है।
सुरक्षित कार्य वातावरण की कमी उन्हें संवेदनशील बनाती है। फ्रंटलाइन वर्कर्स के सामने आने वाले ऐसे मुद्दों के प्रभाव के परिणामस्वरूप आज इनका मनोबल कम होता जा रहा है. इनको ऐसा लगने लगा है कि इनके कार्यों को समाज में उस तरिके से नहीं देखा रहा है जिस भावना से इन्होने अपने कार्यों को अंजाम दिया है. देश के कई भागों में लोगों की इनके प्रति हेय दृष्टि से इन बातों को सच साबित कर दिया. कोरोना के प्रति लापरवाह होते हिन्दुस्तान में ये बिना समुचित किटों एवं अन्य उपकरणों के अभाव में बड़ी जीवटता के साथ अपने रण-मोर्चे पर डटे हुए हैं। आज भी हमारे ये स्वास्थ्य कर्मी, पुलिसकर्मी, सफाई कर्मी लोगों की जान बंचाने के लिए खुद को जोखिम में डाल रहे हैं और सामने आकर लोगों की मदद कर रहे हैं. ये सब हमारी कोरोना के विरूद्ध जंग के हीरो हैं.
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट का कोरोना के इन योद्धा की दुर्दशाओं पर बोलना कोई छोटी बात नहीं है. सुप्रीम कोर्ट का दखल बताता है कि हमने इनके कार्यों को मन से नहीं सराहा और न ही सरकारों और प्रशासन से उनकी बुनियादी बातें सुनकर उनका समाधान करने की कोश्शि की है, जो बेहद गंभीर विषय है. हमें इनके वास्तविक योगदान को पहचान कर इनके मनोबल को मजबूत करने की गहन आवश्यकता है. हमें ये मान लेना होगा कि आज इन्ही कि वजह से हम है . ये मात्रा वेतनभोगी निचले कर्मचारीभर नहीं है, ये हमारे वो हीरो है जिनकी वजह से हमारी जाने बची है, इनके अहसानों को मात्र दुगुना वेतन देने से चुकता नहीं किया जा सकता.
जब हर घर के दरवाजे बंद थे तो यही वो लोग थे जो आपकी पल-पल की खबर ले रहे थे .आपकी हर सहायता अपनी जान दांव पर लगाकर कर रहे थे, तो फिर आज जब इनको हमारी जरूरत है तो हम क्यों इनके लिए आगे नहीं आ रहे? लोगों के साथ-साथ सरकार और प्रशासन को इनके वास्तिक कार्य की सराहना करनी चाहिए और उसकी एवज में इनके कद को भी बढ़ाना चाहिए. अफसरों को इनकी हर सुविधा का ध्यान रखना चाहिए. आखिर उनकी लाज बचाने वाले और सरकारी नीति को धरातल पर ले जाकर सफल करने वाले यही लोग है, सही समय पर वेतन और बढ़ोतरी, एवं समाज में उनकी छवि को उचित स्थान दिलाना किसी भी व्यवस्था की अहम जिम्मेदारी बनती है, अन्यथा उस व्यवस्था को ढहने में देर नहीं लगती.
—-प्रियंका सौरभ
रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,
कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,
सामाजिक परिवर्तन के लिए जातिगत नामों की सख्त मनाही होनी चाहिए।
--प्रियंका सौरभ
Saturday, 1 August 2020
क्या पुरुषों का ये कर्तव्य नहीं बनता कि वो अपने खाली समय में घर के कामों में हाथ बंटवाए?
Journalism running behind the news needs some red light. (What kind of journalism if the first news of any media institution does not bring...

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झोलाछाप डॉक्टर और कमीशनखोरी का धंधा (देश भर में झोलाछाप डॉक्टरों के कारण मरीजों की जान सासत में) ----प्रियंका सौरभ कोरोना काल में पूरी दुन...
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आत्महत्याएं केवल मनोवैज्ञानिक या भावनात्मक कारक नहीं हैं (ऐसे मामलों से निपटने के लिए आज हमें तत्काल उपायों की जरूरत है,भावनात्मक संकट लोग...
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महिलाओं के लिए विवाह की आयु बढ़ाना सही रहेगा या नहीं। ( भारत में जिस समय महिलाओं को उनके भविष्य और शिक्षा की ओर ध्यान देना चाहिये, उस समय...