महामारी में बढ़ा आत्महत्या का ग्राफ
-----------------प्रियंका सौरभ
यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने एक अलर्ट जारी करते हुए अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से आग्रह किया है कि बढ़ते मानसिक दबावों का सामना कर रहे लोगों की रक्षा करने के लिए और ज़्यादा प्रयास करने होंगे। हर 40 सेकंड में, दुनिया में कहीं न कहीं कोई न कोई अपनी जान ले लेता है।आत्महत्या के प्रमुख कारणों में बेरोगजारी, भयानक बीमारी का होना, पारिवारिक कलह, दांपत्य जीवन में संघर्ष, गरीबी, मानसिक विकार, परीक्षा में असफलता, प्रेम में असफलता, आर्थिक विवाद, राजनैतिक परिस्थितियां होती हैं। स्त्रियों की अपेक्षा पुरुष अधिक आत्महत्या करते हैं। इसी प्रकार मानसिक विकार के कारण उन्माद, अत्यधिक चिंता, मानसिक अस्थिरता, स्नायुविकार, सदैव हीनता की भावना से ग्रसित रहने, निराशा से घिरे रहने, अत्यधिक भावुक, क्रोधी होने अथवा इच्छाओं का दास होने आदि प्रमुख मानसिक विकार हैं, जिनके अधीन होकर व्यक्ति आत्महत्या कर लेता है। कोई व्यसन शराब, जुआ, यौन लिप्सा अथवा अपराधी कार्यों, जैसे व्यक्तिगत दोषों की अधिकता के कारण सामाजिक जीवन से अपना तालमेल करने में असमर्थ रहने पर भी आत्महत्या कर लेता है।
लेकिन आज दुनिया भर में कुछ ऐसे मामले सामने आए हैं जहां लोग कोविद -19 के संक्रमण, सामाजिक कलंक, अलगाव, अवसाद, चिंता, भावनात्मक असंतुलन, आर्थिक शटडाउन, अभाव और अनुचित ज्ञान, वित्तीय और भविष्य की असुरक्षा के डर से अपनी जान ले चुके हैं। हाल ही में हुई आत्महत्या की खबरों से हम दुनिया भर में होने वाली आत्महत्या की घटनाओं पर इस वायरस के प्रभाव का अनुमान लगा सकते हैं। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में वैश्विक मानसिक स्वास्थ्य और टिकाऊ विकास पर ‘लान्सेट कमीशन’ की उस चेतावनी का भी उल्लेख है जिसके मुताबिक पहले के हालात में ख़ुद को ठीक ढंग से संभाल लेने वाले बहुत से लोगों के लिए भी मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं क्योंकि महामारी के कारण अनेक प्रकार के दबाव पैदा हुए हैं. लोगों के सामने अनेक अनिश्चितताएँ हैं और इन हालात में ख़ुद को संभालने के लिए लोगों में एल्कॉहॉल (शराब), नशीली दवाओं, तम्बाकू और ऑनलाइन गेम्स की लत बढ़ रही है.महामारी के दौरान बढ़ती आत्महत्याओं के कारण पहले से कुछ अलग भी है, जिसमें आज पहली वजह है सामाजिक अलगाव या दूरी जो आज कोरोना से बचने के लिए अत्यंत जरूरी है मगर यह अलगाव नागरिकों में बहुत अधिक चिंता पैदा करता है।
आज हर उम्र के लोग अवसाद और अकेलेपन से घिर चुके है। जिसके कारण खाली बैठे-बैठे उनमें आत्मघाती विचार उमड़ रहें हैं। अलगाव सामान्य सामाजिक जीवन को बाधित करता है और अनिश्चित काल के लिए मनोवैज्ञानिक भय और फंसा हुआ महसूस करवाता है। घर से काम करने की सलाह ने हमारे सामाजिक जीवन को प्रतिबंधित कर दिया है। दुनिया भर में आर्थिक मंदी की तालाबंदी ने असुरक्षा को जन्म दिया है जिसके कारण उभरते आर्थिक संकट से दहशत पैदा हो गई है, बड़े पैमाने पर बेरोजगारी, गरीबी और बेघरता संभवत: आत्महत्या के खतरे को बढ़ाएगी या ऐसे रोगियों में आत्महत्या की कोशिशों में वृद्धि को बढ़ाएगी। तनाव, चिंता और चिकित्सा स्वास्थ्य पेशेवरों में दबाव आज अपने चरम पर हैं। ब्रिटिश अस्पतालों में 50% चिकित्सा कर्मचारी बीमार हैं। लंदन में, एक युवा नर्स ने कोविद -19 रोगियों का इलाज करते हुए अपनी जान ले ली, सामाजिक बहिष्कार और भेदभाव ने भी कोविद -19 आत्महत्या की सूची में कुछ मामलों को भी जोड़ा है। उदाहरण के लिए, बांग्लादेश में पहला कोविद-19 आत्महत्या का मामला, जहां एक 36 वर्षीय व्यक्ति ने पड़ोसियों द्वारा सामाजिक परहेज के कारण आत्महत्या कर ली और अपने समुदाय में वायरस को रोकने के लिए आत्महत्या कर ली।
दरअसल, आत्महत्या की बढ़ती प्रवृत्ति विशुद्ध रूप से एक समाजशास्त्रीय परिघटना है। आज व्यक्ति अपने जीवन की तल्ख सचाइयों से मुंह चुरा रहा है और अपने को हताशा और असंतोष से भर रहा है। आत्महत्या का समाजशास्त्र बताता है कि व्यक्ति में हताशा की शुरुआत तनाव से होती है जो उसे खुदकुशी तक ले जाती है। यह हैरान करने वाली बात है कि भारत जैसे धार्मिक और आध्यात्मिक स्र्झान वाले देश में कुल आबादी के लगभग एक तिहाई लोग गंभीर रूप से हताशा की स्थिति में जी रहे हैं। भावनात्मक संकट से लोगों को निकालने के लिए स्थानीय, राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय, सामाजिक और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म से कोविद -19 संबंधित समाचारों की सीमा निर्धारित करने की आवश्यकता है और ये सब डब्ल्यूएचओ से प्रामाणिक होने चाहिए। आज हमें भौतिक दूरी के बावजूद एक दूसरे से जुड़ाव और एकजुटता बनाए रखने की जरूरत है। आत्मघाती विचारों, आतंक और तनाव विकार, कम आत्मसम्मान और कम आत्म-मूल्य वाले व्यक्ति, इस तरह के वायरल महामारी में आत्महत्या जैसी भयावह सोच के लिए आसानी से अतिसंवेदनशील होते हैं। हमें आत्महत्या के कारणों को बहुत सावधानी से देखने की जरूरत है, जहां लोग अक्सर कहते हैं कि 'मैं जीवन से थक गया हूं', 'कोई मुझे प्यार नहीं करता', 'मुझे अकेला छोड़ दो' और इसी तरह।
व्यक्ति में इस तरह के व्यवहार पर संदेह करने पर, हम आत्महत्या की प्रवृत्ति से जूझ रहे लोगों को अपने पास ला सकते हैं ताकि उन्हें प्यार और सुरक्षा महसूस हो सके। सामाजिक पुनर्वास के लिए सामाजिक-मनोविज्ञान की जरूरत है, भावनात्मक, मानसिक और व्यवहार संबंधी सहायता के लिए 24 × 7 संकट प्रतिक्रिया सेवा के साथ टेली-काउंसलिंग को लागू करने की आवश्यकता है। व्यक्ति को मनोवैज्ञानिक सहायता और देखभाल दी जानी चाहिए। राज्य इस उद्देश्य के लिए गैर-सरकारी संगठनों के साथ-साथ धार्मिक मिशनरियों से सहायता ले सकता है। मौजूदा राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम और जिला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम को मजबूत करना, साथ ही प्रशिक्षण संसाधनों पर ध्यान केंद्रित करना और धनराशि को व्यवस्थित करना अवसाद और आत्महत्या से लड़ने के लिए कुछ अन्य तरीके हो सकते हैं। बेरोजगार लोगों की मदद करने जैसे दीर्घकालिक समाधान सार्थक कार्य खोजने या प्रशिक्षकों को मानसिक स्वास्थ्य संकट के जोखिम में लोगों की पहचान करने के लिए समुदायों में भेजा जाना अति जरूरी है।
आत्महत्या रोकने योग्य है। जो लोग आत्महत्या पर विचार कर रहे हैं, वे अक्सर अपने संकट के बारे में चेतावनी देते हैं। हम अपने परिवारों के साथ समय बिता सकते हैं, सोशल मीडिया पर दोस्तों से जुड़ सकते हैं, और जब तक हम सभी इस लड़ाई को नहीं जीत लेते, तब तक वे माइंडफुलनेस गतिविधियों में संलग्न रहेंगे।आत्महत्या से मरने वालों की संख्या के ये आंकड़े बेशक डरावने हैं, लेकिन इस प्रवृत्ति को रोका जा सकता है। इसके लिए जरूरी है कि आत्महत्या के पीछे कारणों को सही से समझ कर उस दिशा में काम किया जाए। जिंदगी बहुत प्यारी है, किसी भी हालात में इसे मौत को इस पर जीत मत हासिल करने दीजिए। अगर आपके आस-पास कोई जिंदगी से निराश होता नजर आ रहा है तो थोड़ा सा समय निकालें और उसके जीवन में फिर से आशा लाने का प्रयास करें। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने नॉवल कोरोनावायरस (कोविड-19) को ‘अंतरराष्ट्रीय चिंता वाली सार्वजनिक स्वास्थ्य एमरजेंसी’ घोषित किया है और इसे विश्वव्यापी महामारी के रूप में परिभाषित किया है. लगातार फैलती बीमारी से दुनिया के माथे पर तनाव की लकीरें गहरी हुई हैं जिसका लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर पड़ रहा है. यूएन स्वास्थ्य एजेंसी ने मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा की अहमियत को समझते हुए दिशा-निर्देश तैयार किए हैं।
--- प्रियंका सौरभ
रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस, दिल्ली यूनिवर्सिटी,
कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,
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