Friday 31 July 2020

कोरोना ने पर्यावरण को दिए अच्छे दिन ..

---------------- ---प्रियंका सौरभ   

जीवाश्म ईंधन उद्योग से वैश्विक कार्बन उत्सर्जन इस साल रिकॉर्ड 5% की कमी के साथ 2.5 बिलियन  टन घट सकता है,   क्योंकि कोरोनवायरस महामारी रिकॉर्ड पर जीवाश्म ईंधन की मांग में सबसे बड़ी गिरावट का कारण बानी है। कोरोनावायरस के कारण यात्रा, कार्य और उद्योग पर अभूतपूर्व प्रतिबंधों ने हमारे घुटे हुए शहरों में अच्छी गुणवत्ता वाली हवा के साथ अच्छे दिन सुनिश्चित किए हैं। प्रदूषण और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन स्तर सभी महाद्वीपों में गिर गए हैं



कोरोनोवायरस महामारी ने आर्थिक गतिविधियों में वैश्विक कमी का कारण बनी  है, हालांकि यह चिंता का प्रमुख कारण है, मानव गतिविधियों के नीचे होने का पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।औद्योगिक और परिवहन उत्सर्जन और अपशिष्ट कम हो गए हैं, और औसत दर्जे का डेटा वायुमंडल, मिट्टी और पानी में प्रदूषकों के समाशोधन का कार्य कर रहा है। यह प्रभाव कार्बन उत्सर्जन के विपरीत भी है, जो एक दशक पहले वैश्विक वित्तीय दुर्घटना के बाद 5 प्रतिशत तक बढ़ गया था

मई का महीना, जो आमतौर पर पत्तियों के अपघटन के कारण शिखर कार्बन उत्सर्जन को रिकॉर्ड करता है, ने दर्ज किया है कि 2008 के वित्तीय संकट के बाद हवा में प्रदूषकों का न्यूनतम स्तर क्या हो सकता है। चीन और उत्तरी इटली ने भी अपने नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के स्तर में महत्वपूर्ण कमी दर्ज की है। लॉक डाउन के परिणामस्वरूप, मार्च और अप्रैल में दुनिया के प्रमुख शहरों में वायु गुणवत्ता स्तर में नाटकीय रूप से सुधार हुआ। कार्बन डाइऑक्साइड (CO2), नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) और संबंधित ओज़ोन (O3) के गठन, और पार्टिकुलेट मैटर (PM) में फैक्ट्री और सड़क यातायात उत्सर्जन में कमी के कारण हवा की गुणवत्ता में बड़े पैमाने पर सुधार हुआ। जल निकाय भी साफ हो रहे हैं और यमुना और गंगा नदियों ने देशव्यापी तालाबंदी के लागू होने के बाद से महत्वपूर्ण सुधार दिखा है।

 जब सभी राष्ट्र कोरोनोवायरस के साये में बंद है तो , तो पर्यावरण, परिवहन और उद्योग के नियमों का बेहतर कार्यान्वयन पर्यावरण पर मानव गतिविधि के हानिकारक प्रभावों को कम करने में उपयोगी सिद्ध हुआ है, हालांकि इन विकासों ने वैश्विक उत्पादन, उपभोग और रोजगार के स्तर में भारी आर्थिक और सामाजिक झटके दिए हैं, लेकिन वे वायु प्रदूषण और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में महत्वपूर्ण कमी के साथ भी जुड़े हैं। इसलिए जब तक कोरोनोवायरस संकट आर्थिक गतिविधियों को कम करता रहेगा, कार्बनउत्सर्जन अपेक्षाकृत कम रहेगा।  यह एक टिकाऊ पर्यावरणीय सुधार है.


विश्व स्तर पर, वायु प्रदूषण के संपर्क में आने वाली मौतें हर साल 7 मिलियन मौतों के साथ महामारी के अनुपात में होती हैं। इस समस्या को दूर करने के लिए भारत में भी एक जागृत आह्वान होना चाहिए। वायु प्रदूषण को कम करने का लॉक डाउन आदर्श तरीका नहीं है, लेकिन यह साबित करता है कि वायु प्रदूषण मानव निर्मित है। अब हमे ये पता चल गया है कि हम प्रदूषण को कम कर सकते हैं। कोरोनावायरस संकट भारत को एक स्वच्छ ऊर्जा  के भविष्य में निवेश करने के अवसर देता है, अब हमें कार्रवाई करने की आवश्यकता है.

अल्पकालिक जलवायु प्रदूषक - जिनमें ब्लैक कार्बन, मीथेन, हाइड्रोफ्लोरोकार्बन और ट्रोपोस्फेरिक ओजोन शामिल हैं -  ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ावा देने वाले शक्तिशाली जलवायु कैंसर हैं। ये  दुनिया भर में बड़ी आबादी के लिए भोजन, पानी और आर्थिक सुरक्षा को भी महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करते हैं, अल्पकालिक जलवायु प्रदूषकों के प्रभाव एक प्रमुख विकास के मुद्दे का प्रतिनिधित्व करते हैं जो त्वरित और महत्वपूर्ण वैश्विक कार्रवाई  चाहते है, अल्पकालिक जलवायु प्रदूषक उत्सर्जन को कम करने के उपाय अक्सर सुलभ और लागत प्रभावी होते हैं, और अगर जल्दी से लागू किए गए तो जलवायु के साथ-साथ लाखों लोगों के स्वास्थ्य और आजीविका के लिए तत्काल लाभ ला सकते हैं।


हम उपलब्ध सर्वोत्तम विज्ञान को धन, पहुंच और समझ के द्वारा जीवन बचा सकते हैं। जलवायु परिवर्तन पर विज्ञान के माध्यम से हम जनता के लिए खतरे को भांपने में विफल रहे हैं, जिससे तथ्यों का व्यापक खंडन हुआ है। आवास और जैव विविधता का नुकसान मानव समुदायों में फैलने वाले घातक नए वायरस और सीओवीआईडी -19 जैसी बीमारियों के लिए स्थितियां बनाता है। और अगर हम अपनी भूमि को नष्ट करना जारी रखते हैं, तो हम अपने संसाधनों को भी नष्ट कर देंगे और हमारी कृषि प्रणालियों को गहरा धक्का लगेगा


जलवायु परिवर्तन पर कठोर कार्रवाई भोजन और पानी की कमी, प्राकृतिक आपदाओं और समुद्र के स्तर में वृद्धि को कम कर सकती है, जिससे अनगिनत व्यक्तियों और समुदायों की रक्षा हो सकती है। दुनिया भर में, स्वस्थ लोग अपने समुदायों में अधिक संवेदनशील लोगों की रक्षा के लिए अपनी जीवन शैली बदल रहे हैं। जलवायु परिवर्तन के लिए इसी तरह का समर्पण हमारी ऊर्जा खपत को तुरंत बदल सकता है।

सामान्य रूप से  - जीवाश्म ईंधन को खोदना, जंगलों को काटना और लाभ, सुविधा और खपत के लिए ग्रह के स्वास्थ्य का त्याग करना - विनाशकारी जलवायु परिवर्तन को बढ़ा रहा है। अब  इस विनाशकारी प्रणाली को छोड़ने और हमारे ग्रह के निवासियों के लिए स्थायी तरीके खोजने का समय आ गया है

वायरस एक लक्षण है - एक संकेत जिसे हमें भविष्य में और भी बड़े लॉकडाउन के लिए अभ्यास करना होगा। यह प्रकृति से हमारे लिए एक जगने की पुकार है - हमारे जीने के तरीके के खिलाफ। कोई भी कोरोनोवायरस के लिए भौगोलिक रूप से अलग नहीं है और जलवायु परिवर्तन के लिए भी यही सच है। यदि हम पर्यवरण के अधिकारों का सम्मान नहीं करते हैं तो कोविड-19 जैसे महामारी बहुत अधिक बार आएंगी।

वैश्विक चुनौतियों के लिए साहसिक परिवर्तनों की आवश्यकता होती है - वे परिवर्तन जो केवल सरकार या कंपनियों द्वारा सक्रिय नही किए जा सकते हैं, बल्कि उन्हें व्यक्तिगत व्यवहार परिवर्तन की भी आवश्यकता होती है। हमें दोनों की जरूरत है। यदि कोरोनावायरस संकट में कुछ भी लाया है, तो यह है कि हम - प्रत्येक, अलग-अलग और एक साथ - सिस्टम को बदल सकते हैं। हमने पिछले कुछ हफ्तों में देखा है कि सरकारें कठिन कार्रवाई कर सकती हैं और हम अपना व्यवहार भी काफी जल्दी बदल सकते हैं।



हमें जीवन जीने के न्यूनतमदृष्टिकोण को अपनाने के साथ निम्न-कार्बन जीवनशैली में बदल करना होगा - हो सकता है कि हमें विकास को फिर से परिभाषित करने की आवश्यकता हो - जो पारिस्थितिक सम्पन्नता के संदर्भ में मापी जा सके न कि बढ़ती आय के स्तर के रूप में। आखिरकार, यह अधिक टिकाऊ और धारणीय जीवन जीने का आखिरी मौका हो सकता है।
पृथ्वी के सभी तत्वों को संरक्षण देने का संकल्प लेनाचाहिए।
अब समय आ गया है , हमें धरती माँ की पुकार सुननी होगी। माँ का दर्जा दिया है तो उसके साथ माँ जैसी भावना से पेश भी आना होगा।
धरती खाली-सी लगे,
नभ ने खोया धीर !
अब तो मानव जाग तू,
पढ़ कुदरत की पीर !
वरना आधुनिक युग के महानतम वैज्ञानिक और ब्रह्मांड के कई रहस्यों को सुलझाने वाले खगोल विशेषज्ञ स्टीफेन हाकिंग की भविष्यवाणी हमें झेलनी होगी। उनका मानना था कि पृथ्वी पर हम मनुष्यों के दिन अब पूरे हो चले हैं। हम यहां दस लाख साल बिता चुके हैं। पृथ्वी की उम्र अब महज़ दो सौ से पांच सौ साल ही बच रही है। इसके बाद या तो कहीं से कोई धूमकेतु आकर इससे टकराएगा या सूरज का ताप इसे निगल जाने वाला है, या कोई महामारी आएगी और धरती खाली हो जाएगी । हाकिंग के अनुसार मनुष्य को अगर एक और दस लाख साल जीवित बचे रहना है तो उसे पृथ्वी को छोड़कर किसी दूसरे ग्रह पर शरण लेनी होगी। यह ग्रह कौन सा होगा, इसकी तलाश अभी बाकी है। इस तलाश की रफ़्तार भी बहुत धीमी है। पृथ्वी का मौसम, तापमान और यहां जीवन की परिस्थितियां जिस तेज रफ़्तार से बदल रही हैं, उन्हें देखते हुए उनकी इस भविष्यवाणी पर भरोसा न करने की कोई वजह नहीं दिखती।
----प्रियंका सौरभ 
रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,
कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,
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